भोपाल की शान मिंटो हॉल

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आज हम आपको देश के दिल मध्यप्रदेश की खूबसूरत और मशहूर इमारत मिंटो हॉल की ऐतिहासिक जानकारी से रूबरू कराने जा रहे हैं। 

भोपाल में ऐसी इमारतों की कमी नहीं जिनसे भोपाल की पहचान न हो लेकिन इनमें जो सबसे अलग और सबसे आकर्षक इमारत है वो है मिंटो हॉल। मिंटो हॉल भोपाल की वो इमारत है जिसने कभी अंग्रेजों का दौर देखा, फिर नवाबों का और इसके बाद आजादी का। आज भी यह अपने नये वैभव और आकर्षण के साथ भोपाल शहर के बीचों—बीच बुलंदी से खड़ी हुई है।

कैसे बना मिंटो हॉल? 

मिंटो हॉल के बनने की शुरूआत 1909 में अंग्रेज इंजीनियर ए.सी. रबेन की देखरेख में हुई। उस समय इसके निर्माण में 3 लाख रूपये खर्च हुये और पूरे 24 साल का लंबा वक्त लगा। इस भव्य इमारत का नाम उस समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो के नाम पर रखा गया। रबेन ने इसका आकार ब्रिटेन की महारानी के क्राउन की तरह रखा। जब यह भव्य इमारत बनकर तैयार हुई तो उस समय भोपाल पर सुल्तान जहाँ बेगम का राज था। मिंटो हॉल के बनने का काम भारत की आजादी के पहले पूरा हुआ था इसलिये पहले इसका इस्तेमाल कभी सरकारी दफ्तर तो कभी पुलिस मुख्यालय की तरह हुआ। लेकिन आजादी के बाद जैसे ही मध्यप्रदेश का निर्माण 1956 में हुआ तो मिंटो हॉल की भव्यता को देखते हुये इसे मध्यप्रदेश की विधानसभा में बदल दिया गया। 



वैभव के बाद वीरानी के दिन भी देखे मिंटो हॉल ने. 

एक लंबा सुनहरा दौर देखने के बाद मिंटो हॉल ने ऐसे भी दिन देखे जब यह इमारत वीरान हो गई। मध्यप्रदेश की विधानसभा के नई जगह शिफ्ट होते ही मिंटो हॉल बंद कर दिया गया। कुछ समय ऐसा ही गुजरा पर वक्त ने फिर करवट बदली और मिंटो हॉल को फिर से रिनोवेट कर इसकी पुरानी रौनक लौटा दी गई। आज फिर से मिंटो हॉल भव्यता के साथ भोपाल की पहचान बन गया है। आज इस शाही इमारत में आकर्षक ऑडिटेरियम, कमेटी रूम, मीडिया रूम जैसे कई हॉल हैं। कई सरकारी और निजी प्रोग्राम यहाँ होते रहते हैं। शाम को जब यह इमारत रंगबिरंगी रोशनी से रोशन होती है तो भोपाल की सुंदरता को यह और बढ़ा देती है। 



तो उम्मीद है दोस्तों भोपाल की पहचान से जुड़ी मिंटो हॉल की यह कहानी आपको पसंद आई होगी। हम आपके लिये ऐसी और रोचक कहानियाँ लाते रहेंगे। 
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